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Showing posts from January, 2017

Baksar war

बक्सर का युद्ध   बक्सर का युद्ध  1763 ई. से ही आरम्भ हो चुका था, किन्तु मुख्य रूप से यह युद्ध  22 अक्तूबर , सन् 1764 ई. में लड़ा गया।  ईस्ट इण्डिया कम्पनी  तथा  बंगाल  के नवाब  मीर क़ासिम  के मध्य कई झड़पें हुईं, जिनमें मीर कासिम पराजित हुआ। फलस्वरूप वह भागकर  अवध  आ गया और शरण ली। मीर कासिम ने यहाँ के नवाब  शुजाउद्दौला  और  मुग़ल  सम्राट  शाह आलम द्वितीय  के सहयोग से  अंग्रेज़ों  को बंगाल से बाहर निकालने की योजना बनायी, किन्तु वह इस कार्य में सफल नहीं हो सका। अपने कुछ सहयोगियों की गद्दारी के कारण वह यह युद्ध हार गया। अंग्रेज़ों की कूटनीति इस युद्ध में एक ओर मुग़ल सम्राट शाह आलम द्वितीय, अवध का नवाब शुजाउद्दौला तथा मीर क़ासिम थे, दूसरी ओर अंग्रेज़ी सेना का नेतृत्व उनका कुशल सेनापति 'कैप्टन मुनरो' कर रहा था। दोनों सेनायें  बिहार  में  बलिया  से लगभग 40 किमी. दूर 'बक्सर' नामक स्थान पर आमने-सामने आ पहुँचीं। 22 अक्टूबर, 1764 को 'बक्सर का युद्ध' प्रारम्भ हुआ, किन्तु युद्ध प्रारम्भ होने से पूर्व ही अंग्रेज़ों ने अवध के नवाब की सेना से 'असद ख़ाँ', 'साहूम

Plashi war

प्लासी युद्ध   प्लासी का युद्ध   23 जून , 1757 ई. को लड़ा गया था।  अंग्रेज़  और बंगाल  के नवाब  सिराजुद्दौला  की सेनायें 23 जून, 1757 को मुर्शिदाबाद  के दक्षिण में 22 मील दूर 'नदिया ज़िले' में  भागीरथी नदी  के किनारे 'प्लासी' नामक गाँव में आमने-सामने आ गईं। सिराजुद्दौला की सेना में जहाँ एक ओर 'मीरमदान', 'मोहनलाल' जैसे देशभक्त थे, वहीं दूसरी ओर मीरजाफ़र जैसे कुत्सित विचारों वाले धोखेबाज़ भी थे। युद्ध 23 जून को प्रातः 9 बजे प्रारम्भ हुआ। मीरजाफ़र एवं रायदुर्लभ अपनी सेनाओं के साथ निष्क्रिय रहे। इस युद्ध में मीरमदान मारा गया। युद्ध का परिणाम शायद नियति ने पहले से ही तय कर रखा था।  रॉबर्ट क्लाइव  बिना युद्ध किये ही विजयी रहा। फलस्वरूप मीरजाफ़र को  बंगाल  का नवाब बनाया गया। के.एम.पणिक्कर के अनुसार, 'यह एक सौदा था, जिसमें बंगाल के धनी सेठों तथा मीरजाफ़र ने नवाब को अंग्रेज़ों के हाथों बेच डाला'। बंगाल पर अंग्रेज़ों का अधिकार यद्यपि प्लासी का युद्ध एक छोटी-सी सैनिक झड़प थी, लेकिन इससे भारतीयों की चारित्रिक दुर्बलता उभरकर सामने आ गई। भारत के इतिहास  में

Shaheed din

भारत में शहीद दिवस (सर्वोदय दिवस) शहीद दिवस भारत में उन लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिये मनाया जाता है जो भारत की आजादी, कल्याण और प्रगति के लिये लड़े और अपने प्राणों की बलि दे दी। इसे हर वर्ष 30 जनवरी को पूरे भारत वर्ष में मनाया जाता है। भारत विश्व के उन 15 देशों में शामिल हैं जहाँ हर वर्ष अपने स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देने के लिये शहीद दिवस मनाया जाता है। महात्मा गाँधी जन्म से बनिया थे लेकिन वो खुद का धर्म इंसानियत मानते थे। उनके अनुसार, युद्ध एक कुंद हथियार है और अहिंसा आजादी पाने के लिये सबसे अच्छा हथियार है वो उसका अनुसरण करते थे। शहीद दिवस 2017 2017 में शहीद दिवस (सर्वोदय दिवस) भारत में 30 जनवरी सोमवार और 23 मार्च गुरूवार को मनाया जायेगा। शहीद दिवस क्यों 30 जनवरी को मनाया जाता है शहीद दिवस हर वर्ष 30 जनवरी को उसी दिन मनाया जाता है, जब शाम की प्रार्थना के दौरान सूर्यास्त के पहले वर्ष 1948 में महात्मा गाँधी पर हमला किया गया था। वो भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी थे और लाखों शहीदों के बीच में महान देशभक्त के रुप में गिने जाते थे। भारत की आजादी, विकास और लोक कल्याण

Mount kilimonjaro

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किलिमंजारो , अपने तीन ज्वालामुखीय शंकु,  किबो , मवेन्ज़ी , और  शिरा  के साथ पूर्वोत्तर  तंजानिया  में एक निष्क्रिय स्ट्रैटोज्वालामुखी है और  अफ्रीका  का उच्चतम पर्वत है जिसकी ऊंचाई समुद्र तल से 5,895 मीटर या 19,341 फ़ुट है ( उहरू शिखर  /  किबो शिखर ).किलिमंजारो पर्वत   दुनिया  का सबसे ऊंचा  मुक्त-खड़ा  पर्वत है और साथ ही साथ विश्व का चौथा सबसे उभरा पर्वत है जो आधार से 5,882 मीटर या 19,298 फ़ुट ऊंचा है। किलिमंजारो  नाम का सटीक अर्थ और उत्पत्ति अज्ञात है। माना जाता है कि यह  स्वाहिली  शब्द  किलिमा  (अर्थ "पहाड़") और किचागा शब्द  जारो , जिसका अनुवाद "सफेदी" है का एक संयोजन है, जिससे व्हाईट माउंटेन नाम की उत्पत्ति हुई. एक और मान्यता है कि चागा/किचागा में "जारो" का अर्थ है 'हमारा' और इसलिए किलिमंजारो का मतलब है हमारा पहाड़. यह चागा वासियों से लिया गया है जो इस पहाड़ की तलहटी में रहते हैं। यह अज्ञात है कि  किलिमंजारो  नाम कहां से आया है, लेकिन कई सिद्धांत मौजूद हैं। यूरोपीय खोजकर्ताओं ने 1860 तक इस नाम को अपना लिया था और बताया कि यह इसका स्वाहिली नाम थ