Origit of earth

Kayeshgk.blogsopt.com पृथ्वी का भूगर्भिक इतिहास

वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी की आयु लगभग 4.6 अरब वर्षहै। पृथ्वी के सम्पूर्ण भूगर्भिक इतिहास को निम्नलिखित कल्पों(Eras) में विभाजित किया जा सकता है-

पूर्व कैम्ब्रियन (Pre Cambrian Era) - इसी काल से पृथ्वीकी शुरुआत हुई। यह कल्प लगभग 57 करोड़ वर्ष पूर्व समाप्तहुआ। इस कल्प के दौरान भूपर्पटी, महाद्वीपों व महासागरोंइत्यादि का निर्माण हुआ और जीवन की उत्पत्ति भी इसी कालके दौरान हुई।

पुराजीवी काल (Palaeozoic Era)- 57 करोड़ वर्ष पूर्व से22.5 करोड़ वर्ष तक विद्यमान इस कल्प में जीवों एवंवनस्पतियों का विकास तीव्र गति से हुआ। इस कल्प कोनिम्नलिखित शकों (Periods) में विभाजित किया गया है-

·   कैम्ब्रियन (Cambrian)

·   आर्डोविसियन (Ordovician)

·   सिल्यूरियन (Silurian)

·   डिवोनियन (Divonian)

·   कार्बनीफेरस (Carboniferous)

·   पर्मियन (Permian)

मेसोजोइक कल्प (Mesozoic era)- इस कल्प की अवधि22.5 करोड़ से 7 करोड़ वर्ष पूर्व तक है। इसमें रेंगने वाले जीवअधिक मात्रा में विद्यमान थे। इसे तीन शकों में विभाजित कियागया है-

·   ट्रियासिक (Triassic)

·   जुरासिक (Jurassic)

·   क्रिटैशियस (cretaceous)

सेनोजोइक कल्प (Cenozoic era)- इस कल्प का आरंभआज से 7.0 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ था। इस कल्प में हीसर्वप्रथम स्तनपायी जीवों का आविर्भाव हुआ। इस युग कोपाँच शकों में विभाजित किया गया है-

·   पैलियोसीन (Paleocene)

·   इयोसीन (Eocene)

·   ओलिगोसीन (Oligocene)

·   मायोसीन (Miocene)

·   प्लायोसीन (Pliocene)

इस युग में हिमालय, आल्प्स, रॉकीज, एण्डीज आदिपर्वतमालाओं का विकास हुआ।

नियोजोइक या नूतन कल्प (Neozoic Era) - 10 लाखवर्ष पूर्व से वर्तमान समय तक चलने वाले इस कल्प को पहलेचतुर्थक युग (Quaternary Epoch) में रखकर पुन:प्लीस्टोसीन हिमयुग (Pleistocene) तथा वर्तमान काल जिसेहोलोसीन (Holocene) कहा जाता है, में वर्गीकृत किया जाताहै।

पर्वत 
पर्वत धरातल के ऐसे ऊपर उठे भागों के रूप में जाने जाते हैं,जिनका ढाल तीव्र होता है और शिखर भाग संंकुचित क्षेत्र वालाहोता है। पर्वतों का निम्नलिखित चार भागों में वर्गीकरण कियाजाता है-
मोड़दार पर्वत (Fold Mountains) - पृथ्वी की आंतरिकशक्तियों द्वारा धरातलीय चट्टानों में मोड़ या वलन पडऩे केपरिणामस्वरूप बने हुए पर्वतों को मोड़दार अथवा वलित पर्वतकहते हैं। उदाहरण- यूरोप के आल्प्स, दक्षिण अमेरिका केएण्डीज व भारत की अरावली शृंखला।

अवरोधी पर्वत या ब्लॉक पर्वत (Block Mountains)- इनपर्वतों का निर्माण पृथ्वी की आंतरिक हलचलों के कारण तनावकी शक्तियों से धरातल के किसी भाग में दरार पड़ जाने केपरिणामस्वरूप होता है। उदाहरण- यूरोप में ब्लैक फॉरेस्ट तथावासगेस (फ्रांस) एवं पाकिस्तान में साल्ट रेंज।

ज्वालामुखी पर्वत (Volcanic) - इन पर्वतों का निर्माणज्वालामुखी द्वारा फेंके गए पदार्थों से होता है। उदाहरण- हवाईद्वीप का माउंट माउना लोआ व म्यांमार का माउंट पोपा ।

अवशिष्ट पर्वत (Residual Mountains) - इनका निर्माणविभिन्न कारकों द्वारा अपरदन से होता है। उदाहरण- भारत केअरावली, नीलगिरि आदि।

पठार
साधारणतया अपने सीमावर्ती धरातल से पर्याप्त ऊँचे एवंसपाट तथा चौड़े शीर्ष भाग वाले स्थलरूप को 'पठार' के नामसे जाना जाता है। इनके निम्नलिखित तीन प्रकार होते हैं-
अन्तरापर्वतीय पठार (Intermountane Plateau) - ऐसेपठार चारों ओर से घिरे रहते हैं। उदाहरण- तिब्बत का पठार,बोलीविया, पेरू इत्यादि के पठार।
पीडमॉण्ट पठार (Piedmont Plateau)- उच्च पर्वतों कीतलहटी में स्थित पठारों को 'पीडमॉण्ट' पठार कहते हैं।उदाहरण - पीडमॉण्ट (सं. रा. अमेरिका), पेटागोनिया (दक्षिणीअमेरिका) आदि। 
महाद्वीपीय पठार (Continental Plateau) - ऐसे पठारोंका निर्माण पटल विरूपणी बलों द्वारा धरातल के किसीविस्तृतभू-भाग के ऊपर उठ जाने से होता है। उदाहरण- भारतके कैमूर, राँची तथा कर्नाटक के पठार।

पृथ्वी

पृथ्वी  पूरे ब्रह्मांड में एक मात्र एक ऐसी ज्ञात जगह है जहांजीवन का अस्तित्व है। इस ग्रह का निर्माण लगभग 4.54 अरबवर्ष पूर्व हुआ था और इस घटना के 1 अरब वर्ष पश्चातï यहांजीवन का विकास शुरू हो गया था। तब से पृथ्वी के जैवमंडलने यहां के वायु मण्डल में काफी परिवर्तन किया है। समयबीतने के साथ ओजोन पर्त बनी जिसने पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्रके साथ मिलकर पृथ्वी पर आने वाले हानिकारक सौर विकरणको रोककर इसको रहने योग्य बनाया।

पृथ्वी का द्रव्यमान 6.569&1021 टन है। पृथ्वी बृहस्पतिजैसा गैसीय ग्रह न होकर एक पथरीला ग्रह है। पृथ्वी सभी चारसौर भौमिक ग्रहों में द्रव्यमान और आकार में सबसे बड़ी है।अन्य तीन भौमिक ग्रह हैं- बुध, शुक्र और मंगल। इन सभी ग्रहोंमें पृथ्वी का घनत्व, गुरुत्वाकर्षण, चुम्बकीय क्षेत्र, और घूर्णनसबसे ज्यादा हैं।

ऐसा माना जाता है कि पृथ्वी सौर-नीहारिका (nebula) केअवशेषों से अन्य ग्रहों के साथ ही बनी। निर्माण के बाद पृथ्वीगर्म होनी शुरू हुई। इसका अंदरूनी हिस्सा गर्मी से पिघला औरलोहे जैसे भारी तत्व पृथ्वी के केंद्र में पहुँच गए। लोहा वनिकिल गर्मी से पिघल कर द्रव में बदल गए और इनके घूर्णन सेपृथ्वी दो ध्रुवों वाले विशाल चुंबक में बदल गई। बाद में पृथ्वी मेंमहाद्वीपीय विवर्तन या विचलन जैसी भूवैज्ञानिक क्रियाएँ पैदाहुईं। इसी प्रक्रिया से पृथ्वी पर महाद्वीप, महासागर औरवायुमंडल आदि बने।

पृथ्वी की गतियाँ
पृथ्वी अपने अक्ष पर निरंतर घूमती रहती है। इसकी दो गतियाँहैं-

घूर्णन (Rotation)

पृथ्वी के अपने अक्ष  पर चक्रण को घूर्णन कहते हैं। पृथ्वीपश्चिम से पूर्व दिशा में घूमती है और एक घूर्णन पूरा करने में23 घण्टे, 56 मिनट और 4.091 सेकेण्ड का समय लेती है।इसी से दिन व रात होते हैं।

परिक्रमण (Revolution)

पृथ्वी सूर्य के चारों ओर अंडाकार पथ पर 365 दिन, 5 घण्टे, 48 मिनट व 45.51 सेकेण्ड में एक चक्कर पूरा करती है, जिसेउसकी परिक्रमण गति कहते हैं। पृथ्वी की इस गति की वजहसे ऋतु परिवर्तन होता है।

अक्षांश रेखाएँ (Latitude)

ग्लोब पर पश्चिम से पूर्व की ओर खींची गईं काल्पनिक रेखाओंको अक्षांश रेखाएं कहते हैं। अक्षांश रेखाओं की कुल संख्या180 है। प्रति 1श की अक्षांशीय दूरी लगभग 111 किमी. केबराबर होते हैं। अक्षांश रेखाओं में 

तीन प्रमुख रेखाएं हैं-

·   कर्क रेखा (Tropic of cancer)- यह रेखाउत्तरी गोलाद्र्ध में भूमध्यरेखा के समानांतर 23 30' पर खींची गई है।

·   मकर रेखा (Tropic of Capricorn)- यह रेखादक्षिणी गोलाद्र्ध में भूमध्य रेखा के समानांतर 23 30' अक्षांश पर खींची गयी है।

·   विषुवत अथवा भूमध्य रेखा (Equator)- यहरेखा पृथ्वी को उत्तरी गोलाद्र्ध (Northern Hemisphere) और दक्षिणी गोलाद्र्ध(Southern Hemisphere)-दो बराबर भागोंमें बाँटती है। इसे शून्य अंश अक्षांश रेखा भी कहतेहैं।

प्रत्येक वर्ष दो संक्रांति होती हैं
कर्क संक्रांति (Summer Solistice) - 21 जून को सूर्यकर्क रेखा पर लम्बवत चमकता है। इस स्थिति को कर्क संक्रांति(Summer Solistice) कहते हैं। 
मकर संक्रांति (Winter Solistice)- 22 दिसम्बर को सूर्यमकर रेखा पर लम्बवत चमकता है। इस स्थिति को मकरसंक्रांति (Winter Solistice) कहते हैं।

देशांतर रेखाएँ (Longitudes)
पृथ्वी पर  दो अक्षांशों के मध्य कोणीय दूरी को देशांतर कहाजाता है। भूमध्य रेखा पर 1श के अंतराल पर देशांतरों के मध्यदूरी 111.32 किमी. होती है। दुनिया का मानक समय इसीरेखा से निर्धारित किया जाता है। इसीलिए इसे प्रधान मध्यान्हदेशांतर रेखा (Prime Meridian) कहते हैं। लंदन का एकनगर ग्रीनविच इसी रेखा पर स्थित है, इसलिए इस रेखा कोग्रीनविच रेखा भी कहते हैं। 1श देशांतर की दूरी तय करने मेंपृथ्वी को 4 मिनट का समय लगता है।

·   स्थानीय समय (Local Time)- पृथ्वी पर स्थानविशेष के सूर्य की स्थिति से परिकल्पित समय कोस्थानीय समय कहते हैं।

·   मानक समय (Standard Time)- किसी देशअथवा क्षेत्र विशेष में किसी एक मध्यवर्ती देशांतररेखा के स्थानीय समय को पूरे देश अथवा क्षेत्र कासमय मान लिया जाता है जिसे मानक समय कहतेहैं। भारत के 82 30' पूर्व देशांतर रेखा के स्थानीयसमय को पूरे देश का मानक समय माना गया है।

·   अंतर्रा्रीय तिथि रेखा (International Date Line) - यह एक काल्पनिक रेखा है जो प्रशांतमहासागर के बीचों-बीच 180श देशांतर पर उत्तर सेदक्षिण की ओर खींची गई है। इस रेखा के पूर्व वपश्चिम में एक दिन का अंतर होता है।

सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण
पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है जबकि चंद्रमा पृथ्वी का। जबसूर्य एवं चंद्रमा के मध्य पृथ्वी आ जाती है तो पृथ्वी की छायाचंद्रमा पर पडऩे लगती है, जिससे ग्रहण पड़ता है जो  चंद्र ग्रहणकहलाता है। जब पृथ्वी एवं सूर्य के मध्य चंद्रमा आ जाता है तोउसकी छाया पृथ्वी पर पड़ती है जिससे सूर्यग्रहण की घटनाहोती है।
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