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पाकिस्तान की संसद ने कई दशकों से लंबित पड़े हिंदू मैरेज बिल को आखिरकार पारित कर दिया. इस बिल के पारित होने से अब पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय हिंदुओं से जुड़े अहम मसलों को कानूनी जामा पहनाया जा सकेगा. इस बिल में हिंदुओं की शादी, परिवार, मां और बच्चे को सुरक्षा प्रदान करने की बात की गई है.
नए बिल के कानून बनने के बादपाकिस्तान में हिंदुओं की शादियों का रजिस्ट्रेशन हो सकेगा. बीते 66 सालों से यहां हिंदुओं की शादी रजिस्टर्ड नहीं होती थी, इससे यह समुदाय बेहद असुरक्षित महसूस करता था. इनके अलावा तलाक और जबरन धर्मपरिवर्तन जैसे मसलों का आसानी से समाधान निकाला जा सकेगा. अब तक यहां हिंदू समुदाय के लोगों खासकर महिलाओं को अपनी शादी को साबित करने के लिए कोई दस्तावेज नहीं होता था. इनके अलावा यह समुदाय पुनर्विवाह, संतान गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे कानूनी अधिकारों से वंचित था. नए कानून से अब पाकिस्तान में हिंदू महिलाओं के अपहरण की घटनाओं पर भी लगाम लगने की उम्मीद है.
पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी वहां की जनसंख्या का महज 2 फीसदी है. 1998 की जनगणना के मुताबिक पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी करीब 25 लाख थी.
भारत की संसद ने हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में पारित किया था. हिंदू विवाह को लेकर भारतीय कानून और पाकिस्तान के कानून में बहुत फर्क है. पाकिस्तान में हिंदू विवाद अधिनियम वहां के हिंदू समुदाय के लोगों पर लागू होता है. जबकि भारत में हिंदू मैरेज एक्ट हिंदुओं के अलावा, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई समुदाय पर लागू होता है.
पाकिस्तान में हिंदू मैरेज बिल के ड्राफ्ट के मुताबिक शादी के 15 दिनों के भीतर इसका रजिस्ट्रेशन कराना होगा. जबकि भारतीय कानून में इसके लिए कोई खास प्रावधान नहीं है. भारतीय हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 8 में कहा गया है कि शादियों के रजिस्ट्रेशन के बारे में राज्य सरकारें कानून बना सकती हैं. पाकिस्तान में बिल के मुताबिक शादी के समय हिंदू जोड़े की उम्र 18 साल या उससे अधिक होनी चाहिए. जबकि भारत में हिंदू विवाह अधिनियम के तहत लड़के की उम्र 21 साल और लड़की की उम्र 18 साल या उससे अधिक होनी चाहिए.
पाकिस्तान में पारित हिंदू मैरेज बिल में यह भी कहा गया है कि अगर पति पत्नी एक साल या उससे अधिक समय से अलग रह रहे हैं और वो एक दूसरे के साथ नहीं रहना चाहते, साथ ही शादी को रद्द करना चाहें तो वो ऐसा कर सकते हैं. जबकि भारतीय कानून के मुताबिक अगर पति-पत्नी दो वर्षों या उससे अधिक समय से अलग रह रहे हैं और शादी को रद्द करना चाहें तो वो ऐसा कर सकते हैं. पाकिस्तान में इस विधेयक के अनुसार हिंदू विधवा को भी अपने पति की मृत्यु के छह महीने के बाद फिर से शादी करने का अधिकार होगा. भारत में हिंदू विधवाओं की शादी से जुड़े प्रावधान Hindu Widows' Remarriage Act, 1856 में निहित हैं. इस कानून के तहत फिर से शादी के लिए कोई तय समय सीमा नहीं है.
इस विधेयक में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि अगर कोई हिंदू व्यक्ति अपनी पहली पत्नी के होते हुए दूसरी शादी करता है तो यह एक दंडनीय अपराध माना जाएगा. भारत में पहली पत्नी के होते हुए दूसरी शादी करना हिंदू विवाह अधिनियम और भारतीय दंड संहिता, दोनों के तहत ही दंडनीय अपराध है. इसके अलावा यह हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक के लिए एक ग्राउंड भी है. पाकिस्तान में विधेयक में हिंदू विवाह पंजीकरण के नियमों का उल्लंघन करने पर छह महीने कैद की सजा का प्रावधान है. जबकि भारत में हिंदू विवाह अधिनियम के तहत सजा का ऐसा कोई प्रावधान नहीं है.
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