Chipko movement
चिपको आंदोलन की जननी
चिपको आन्दोलन
पेड को काटने से बचाने के लिये उससे चिपकी ग्रामीण महिलाएँ
चिपको आन्दोलन एक पर्यावरण-रक्षा का आन्दोलन है। यह भारत के उत्तराखण्ड राज्य (तब उत्तर प्रदेश का भाग) में किसानो ने वृक्षों की कटाई का विरोध करने के लिए किया था। वे राज्य के वन विभाग के ठेकेदारों द्वारा वनों की कटाई का विरोध कर रहे थे और उन पर अपना परम्परागत अधिकार जता रहे थे।
यह आन्दोलन तत्कालीन उत्तर प्रदेश के चमोली जिले में सन १९७३ में प्रारम्भ हुआ। एक दशक के अन्दर यह पूरे उत्तराखण्ड क्षेत्र में फैल गया। चिपको आन्दोलन की एक मुख्य बात थी कि इसमें स्त्रियों ने भारी संख्या में भाग लिया था।
'चिपको आन्दोलन' का घोषवाक्य है-
क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार।
मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार।
सन १९८७ में इस आन्दोलन को सम्यक जीविका पुरस्कार(Right Livelihood Award) से सम्मानित किया गया था।
‘जब कभी चिपको आंदोलन का ज़िक्र आता है तो वृक्षों की रक्षा के लिए एक व्यापक जंग छेडने वाले सेवी बहुगुना का चित्र मस्तिष्क में घूमने लगता है। बहुगुना जी ने इस आंदोलन को विस्तार दिया, परंतु पेडों की रक्षा की प्रथम मुहीम चलाने का श्रेय जाता है एक महिला को! यह महिला न किसी शहर की थी और न पढ़ी-लिखी। वह थी गढ़वाल हिमालय के जिला चमोली के एक गाँव रैंणी की साधारण गृहणी गौरा देवी, जिसने पेड़ों के कटने का दुष्परिणाम ग्लोबल वार्मिंग की चर्चा के पहले ही देख लिया था।
१९६२ के चीनी आक्रमण के बाद जब भारत सरकार ने अपने सरहदों की सुध ली और वहाँ सड़कों का निर्माण किया तो धड़ाधड़ पेड काटे जाने लगे। इसे देखते हुए सन् १९७२ में रैंणी गाँव के लोगों में चर्चा हुई और एक महिला मंगलदल का गठन हुआ जिसकी अध्यक्षा गौरा देवी को बनाया गया। गाँवों के जल, जंगल और ज़मीन को बचाने के लिए लोगों में जागरण पैदा किया गया।
बात सन् १९७४ की है जब रैंणी गाँव के जंगल के लगभग ढाई हज़ार पेड़ों को काटने की नीलामी हुई। गौरा देवी ने महिला मंगलदल के माध्यम से उक्त नीलामी का विरोध किया। इसके बावजूद सरकार और ठेकेदार के निर्णय में बदलाव नही आया। जब ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने पहुँचे तो गौरा देवी और उनके २१ साथियों ने उन लोगों को समझाने का प्रयास किया। गौरा देवी ने कहा कि ये जंगल हमारे देवता हैं और यदि हमारे रहते किसी ने हमारे देवता पर हथियार उठाया तो तुम्हारी खैर नहीं। जब ठेकेदार के लोगों ने पेड़ काटने की ज़िद की तो महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर उन्हें ललकारा कि पहले हमें काटो फिर इन पेड़ों को हाथ लगाना। काफी जद्दोजहद के बाद ठेकेदार के लोग चले गए।
गाँव के लोगों ने गौरा देवी की निडरता को सराहा । ग्रामवासियों ने मिल कर ठेकेदार तथा स्थानीय वन विभाग के अधिकारियों के सामने अपनी बात रखी। परिणाम यह हुआ कि रैंणी गाँव का जंगल नहीं काटा गया और यहाँ से चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई॥
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